पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है..
आजकल हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है..
अपने घर की कलह से फुरसत मिले..तो सुने..
आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है..
जहां, जब, जिसका, जी चाहा थूक दिया..
आजकल हाथों में पीकदान कौन रखता है..
खुद ही पंख लगाकर उड़ा देते हैं चिड़ियों को..
आजकल परिंदों मे जान कौन रखता है..
हर चीज मुहैया है इस शहर में किश्तों पर..
आजकल हसरतों पर लगाम कौन रखता है..
बहलाकर छोड़ आते है वृद्धाश्रम में मां बाप को..
‘परम’ आजकल घर में पुराना सामान कौन रखता
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“चलो पीहर चलो पीहर”
अगर बच्चो की बुक्स रद्दि में देदी हो
नयी किताब आ गई हो
बच्चो के रिजल्ट आ गए हो, तो
चलो पीहर चलो पीहर
मिर्ची, हल्दी, धनिया भर दिए हो,
जीरा, राई, अजमा साफ कर दिए हो,
गेहू अगर भर दिए हो तो,
चलो पीहर चलो पीहर
केर का आचार दल दिया हो,
साबूदाने की चकरी हो गई हो,
ननन्द रहकर जा चुकी हे या,
भाभी रहे कर आ चुकी हे तो,
चलो पीहर चलो पीहर
गरम गरम खाने को,
ठंडा ठंडा पिने को,
देर से रात में सोने को,
देर से सुबह उठने को,
माँ के हाथ का खाने को,
भाभी का प्यार पाने को,
भाई से बात करने को,
भतीजो से मस्ती करने को,
बच्चों के साथ बच्चा बनने को,
अपनी मनमानी करने को,
चलो पीहर चलो पीहर
छुंदा और केर का आचार डालने तक वापस आयेंगे
साडे 11 महीने ससुराल में रहने के लिए
पीहर से 15 दिन में प्यार का डोज़ लाने को
15 दिन के पेट्रोल से ससुराल में साडे 11 महीने हम ओरतो की गाड़ी भागती हे !!
इस लिए चलो पीहर चलो पीहर ✈
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माँ
माँ की ममता, फूलों जैसी, माँ की छवि महान,
माँ की सूरत में दिखता है धरती पर भगवान ।
माँ
माँ के बिना दुनिया की हर चीज़ कोरी है,
दुनिया का सबसे सुंदर संगीत माँ की लोरी है ।
माँ
माँ तू कितनी अच्छी है, मेरा सब कुछ करती है,
भूख मुझे जब लगती है, खाना मुझे खिलाती है,
जब मैं गन्दा होता हूँ, रोज मुझे नहलाती है,
जब मैं रोने लगता हूँ, चुप तू मुझे कराती ही,
माँ मेरे मित्रों में सबसे पहले तू ही आती है ।
माँ
हमारा जन्मदिन,, हमारी ज़िन्दगी का वी एकमात्र दिन,
जब हमारी माँ हमारे रोने पर मुस्कराई होगी ।
माँ
प्यार करना उसका उसूल है,
दुनिया की मोहब्बत फिजूल है,
माँ की हर दुआ कबूल है,
माँ को नाराज करना इंसान तेरी भूल है ।
माँ
“माँ कैसी हो ” इतना ही पूछ,
उसे मिल गया सब कुछ ।
माँ
मेरी तकदीर में एक भी गम ना होता,
अगर तकदीर लिखने का हक मेरी माँ का होता ।
माँ
जब जब कागज पर लिखा मैंने माँ का नाम,
कलम अदब से बोल उठी हो गए चारों धाम ।
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बहुत सुन्दर शब्द जो
एक मंदिर के दरवाज़े पर लिखे थे :
सेवा करनी है तो, घड़ी मत देखो !
प्रसाद लेना है तो, स्वाद मत देखो !
सत्संग सुनाना है तो, जगह मत देखो !
बिनती करनी है तो, स्वार्थ मत देखो !
समर्पण करना है तो, खर्चा मत देखो !
रहमत देखनी है तो, जरूरत मत देखो !!
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पीहर जा रहे हो तो कुछ नियम –
1 अपनी भाभियों को जादा परेशान नही करें
2 अपने आप को जादा smart ना समझौ क्यू कि भाभीया कोई कम smart नई होती।
3 पिहर मै जाकर आपने आप को महारानी ना समझो… जाे दिनभर भाभी पर हूँकूम शाही चलाओ…. भगा देगी 4 दिन मे ही
4 दिन भर आपने भाभी केा किचन मे भिडाये मत रखना जैसे जन्मो से भुखे ही हो…
भाभी…
छोटी हो या बडी, काम आती है सभी ।
चले है उसी से पीहर, वह है घर की लीडर ।
बेटो से न चला हैं घर-संसार,
भाभियाँ चलाती है घर – परिवार,
वह भी होती है आधी हकदार ।
करो उनकी गलतियों को नजरअंदाज,
जैसे हम सब से होती है गलतियाँ आज।
मान – सम्मान से रखो उन्हें,
क्योंकि माँ के बाद भाभी का ही स्थान है ।
छोटी हो या बडी, भाभी होती है भाभी।
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कल मैं दुकान से जल्दी घर चला आया। आम तौर पर रात में 10 बजे के बाद आता हूं, कल 8 बजे ही चला आया।
सोचा था घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा, फिर कहूंगा कि कहीं बाहर खाना खाने चलते हैं। बहुत साल पहले, , हम ऐसा करते थे।
घर आया तो पत्नी टीवी देख रही थी। मुझे लगा कि जब तक वो ये वाला सीरियल देख रही है, मैं कम्यूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं। मैं मेल चेक करने लगा, कुछ देर बाद पत्नी चाय लेकर आई, तो मैं चाय पीता हुआ दुकान के काम करने लगा।
अब मन में था कि पत्नी के साथ बैठ कर बातें करूंगा, फिर खाना खाने बाहर जाऊंगा, पर कब 8 से 11 बज गए, पता ही नहीं चला।
पत्नी ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया, मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाते हुए मैंने कहा कि खा कर हम लोग नीचे टहलने चलेंगे, गप करेंगे। पत्नी खुश हो गई।
हम खाना खाते रहे, इस बीच मेरी पसंद का सीरियल आने लगा और मैं खाते-खाते सीरियल में डूब गया। सीरियल देखते हुए सोफा पर ही मैं सो गया था।
जब नींद खुली तब आधी रात हो चुकी थी।
बहुत अफसोस हुआ। मन में सोच कर घर आया था कि जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा। पर यहां तो शाम क्या आधी रात भी निकल गई।
ऐसा ही होता है, ज़िंदगी में। हम सोचते कुछ हैं, होता कुछ है। हम सोचते हैं कि एक दिन हम जी लेंगे, पर हम कभी नहीं जीते। हम सोचते हैं कि एक दिन ये कर लेंगे, पर नहीं कर पाते।
आधी रात को सोफे से उठा, हाथ मुंह धो कर बिस्तर पर आया तो पत्नी सारा दिन के काम से थकी हुई सो गई थी। मैं चुपचाप बेडरूम में कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोच रहा था।
पच्चीस साल पहले इस लड़की से मैं पहली बार मिला था। पीले रंग के शूट में मुझे मिली थी। फिर मैने इससे शादी की थी। मैंने वादा किया था कि सुख में, दुख में ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।
पर ये कैसा साथ? मैं सुबह जागता हूं अपने काम में व्यस्त हो जाता हूं। वो सुबह जागती है मेरे लिए चाय बनाती है। चाय पीकर मैं कम्यूटर पर संसार से जुड़ जाता हूं, वो नाश्ते की तैयारी करती है। फिर हम दोनों दुकान के काम में लग जाते हैं, मैं दुकान के लिए तैयार होता हूं, वो साथ में मेरे लंच का इंतज़ाम करती है। फिर हम दोनों भविष्य के काम में लग जाते हैं।
मैं एकबार दुकान चला गया, तो इसी बात में अपनी शान समझता हूं कि मेरे बिना मेरा दुकान का काम नहीं चलता, वो अपना काम करके डिनर की तैयारी करती है।
देर रात मैं घर आता हूं और खाना खाते हुए ही निढाल हो जाता हूं। एक पूरा दिन खर्च हो जाता है, जीने की तैयारी में।
वो पंजाबी शूट वाली लड़की मुझ से कभी शिकायत नहीं करती। क्यों नहीं करती मैं नहीं जानता। पर मुझे खुद से शिकायत है। आदमी जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है, सबसे कम उसी की परवाह करता है। क्यों?
कई दफा लगता है कि हम खुद के लिए अब काम नहीं करते। हम किसी अज्ञात भय से लड़ने के लिए काम करते हैं। हम जीने के पीछे ज़िंदगी बर्बाद करते हैं।
कल से मैं सोच रहा हूं, वो कौन सा दिन होगा जब हम जीना शुरू करेंगे। क्या हम गाड़ी, टीवी, फोन, कम्यूटर, कपड़े खरीदने के लिए जी रहे हैं?
मैं तो सोच ही रहा हूं, आप भी सोचिए
कि ज़िंदगी बहुत छोटी होती है। उसे यूं जाया मत कीजिए। अपने प्यार को पहचानिए। उसके साथ समय बिताइए। जो अपने माँ बाप भाई बहन सागे संबंधी सब को छोड़ आप से रिश्ता जोड़ आपके सुख-दुख में शामिल होने का वादा किया उसके सुख-दुख को पूछिए तो सही।
एक दिन अफसोस करने से बेहतर है, सच को आज ही समझ लेना कि ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती है। कब मुट्ठी से वो निकल जाएगी, पता भी नहीं चलेगा।
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सिंदूर, बिछुवे, शहनाई ने नही किया पराया,
घर जाती हूँ तो मेरा बैग मुझे है चिढ़ाता… तू एक मेहमान है अब, ये पल पल बताता
माँ कहती रहती सामान बैग में फ़ौरन डालो
हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता… तू एक मेहमान है ये पल पल बताता
घर पंहुचने से पहले ही लौटने की टिकट,
वक़्त किसी परिंदे सा उड़ते जाता ,
उंगलियों पे लेकर जाती गिनती के दिन,
फिसलते हुए जाने का दिन पास आता … तू एक मेहमान है ये पल पल बताता
अब कब होगा आना सबका पूछना,
ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता,
मनुहार से दरवाजे से निकलते तक,
बैग में कुछ न कुछ भरते जाता … तू एक मेहमान है ये पल पल बताता
चीनी मत डालना चाय में मेरी,
पापा का रसोई में आकर बताना,
सुगर पोजिटिव निकला था न अभी,
फ़ोन पे तुमको क्या क्या सुनाता … तू एक मेहमान है ये पल पल बताता
जिस बगीचे की गोरैय्या भी पहचानती थी
अरे वहाँ अमरुद पेड़ पापा ने कब लगाया ??
कमरे की चप्पे चप्पे में बसती थी मैं,
आज लाइट्स, फैन के स्विच भूल हाथ डगमगाता … तू एक मेहमान है ये पल पल बताता
पास पड़ोस जहाँ बच्चा बच्चा था वाकीफ,
बिटिया कब आई पूछने चला आता ….
कब तक रहोगी पूछ अनजाने में वो
घाव एक और गहरा देता जाता … तू एक मेहमान है ये पल पल बताता
ट्रेन में तुम्हारे हाथो की बनी रोटियों का
डबडबाई आँखों में आकार डगमगाता,
लौटते वक़्त वजनी हो गया बैग,
सीट के नीचे खुद भी उदास हो जाता … तू एक मेहमान है ये पल पल बताता
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वेलेंटाइन डे आते ही छोटू की आँखों में एकख़ुशी की लहर दौड़
जाती थी ! मंदिर के साइड से लगे दुकान पे
काम करने वाला छोटू
हर बार की तरह इस बार भी खूब सारे
गुलाब की पंखुड़िया खरीद
लाया था ! छोटू को ये
नहीं पता था की वेलेंटाइन डे
होता क्या है ? पर ये जरूर पता था उसे
कि आज दस का बिकने
वाला गुलाब पच्चास में बेचेगा ! वह सुबह से
दौड़ भाग में
लगा था इस उम्मीद में कि आज
अच्छी कमाई कर
लेगा वो..दो तीन घंटे में उसके सारे गुलाब बिक
गए ! उसने
जल्दी से पैसो का गुना भाग करके पाँच
सौ अलग निकल
लिया !
अब फुर्ती से भागकर सेठ के पास
पंहुचा उसकी उधारी चुकाई !
और दनदनाता हुआ बाजार पहुंच गया हीरामन
के
दुकान पे..
“अरे छोटू आज बड़ी जल्दी आ गया रे तू
तो ..?
हा चच्चा आज चौदह फरवरी है न
अरे हाँ में तो भूल ही गया था ..
“बता क्या चाहिए ?
वो हरी वाली फ्रॉक तो दिखाना चच्चा ,
छोटू ने
चहकते हुए कहा
“महंगी है नहीं ले पायेगा
कित्ते कि है ?
“पुरे चार सौ अस्सी कि बोल पैक कर दू क्या.?
छोटू ने कुछ देर सोचते हुए कहा ..
ठीक है चच्चा कर दो पैक..
पाँच सौ में चार सौ अस्सी गया बचा बीस..
अच्छा बीस कि डेरी मिल्क
भी पैक कर दियो चच्चा..
“ये ले कहते हुए चच्चा ने उसे पैकेट थम दिया..
छोटू फुदकते हुए घर पंहुचा माँ से
पूछा “छोटी कहा है..?
यही कही खेल
रही होगी..?
छोटू ने उसे जल्दी से ढूढ़ा और जादू
कि झप्पी देते हुए बोला
“हैप्पी वेलेंटाइन डे छोटी ”
सोच सोच का फरक है प्यार तो प्यार ही होता है
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सूना हैं की यह ग्रुप बहुत दिमाग वाला हैं…,,,
तो इन 5 चीजों के नाम हिंदी में बताओ……
1) एम्बुलेंस
2) मोबाईल
3) ट्यूबलाइट
4) sim कार्ड
5) xerox
सब के लिए हैं ये खुला चैलेन्ज……
तो दिमाग की बत्ती जलाओ !!!!!
ऑल दि बेस्ट
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ये ग्रुप बड़ा बेमिसाल है
हर किसी को इक दूजे का ख्याल है।
ये ग्रुप नही ये प्रेम की बस्ती है
यहां मनोरंजन की डगर बहुत सस्ती है।
मिलता यंहा ज्ञान का भंडार है
कुछ दोस्तों के हुनर से हुआ साकार है।
ये ग्रुप तकनीक से भी ओतप्रोत है
हमारा एडमिन इसका सबसे बड़ा श्रोत है।
इस ग्रुप में जीनियस की भी भरमार है
कुछ दबंगो की यहां भी सरकार है।
यहां सालगिरह और जन्मदिन भी मनाये जाते है
आन लाइन गिफ्ट और केक भी पहुचाये जाते है।
इस सब के बीच कुछ दोस्तो की चुप्पी बहुत खलती है
उनसे भी गुफ्तगु को भावनाये मचलती है।।
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